Wednesday, February 3, 2010

राष्ट्रीय एकता का पर्व: होली

र्व कोई भी हो हमारे देश में बड़ी धूमधाम से और जोश से मनाया जाता है । सभी पर्व अपने साथ खुशियो और समृद्धि का संदेश लेकर आते हैं, किंतु होली पर्व का अपना अनोखा ही रूप रंग होता है । रंगों के इस त्यौहार को भारतीय एकता का पर्व भी माना जाता है ।
    समय के परिवर्तन के साथ होली और होली खेलने का अंदाज भी बदलता रहा है । एक समय ऐसा था जब होली के पर्व पर युवतियां केसरिया वस्त्र पहनकर अपने प्रियतम के साथ रंगीन पानी के टब में उतरकर होली खेला करती थीं । बिना किसी भेदभाव के युवक और युवतियां यहां तक कि हिन्दू और मुस्लिम घुल-मिलकर होली का आनन्द लेते थे । मस्ती में घूमते थे, जमकर नृत्यगान हुआ करता था । आज होली के पर्व पर रंग कम कीचड़ अधिक उछाला जाता है ।
    उल्लास के इस पर्व होली को श्रीकृष्ण भी बड़े हर्षोल्लास के साथ खेलते थे । श्रीकृष्ण को होली दूध-दही से खेलनी प्रिय थी । उनके काल में होली दूध-दही से खेली जाती थी । आज भी ब्रज में होली बड़े ही दिलचस्प अंदाज से खेली जाती है । युवतियां उल्लास के साथ युवकों पर छड़ियाँ  बरसाती हैं और पुरुष सहर्ष उन छड़ियों को झेलकर होली का आनन्द उठाते हैं ।
    मुगलों ने वर्षों तक हिन्दुस्तान पर राज किया है । हिन्दुकाल के राजा-महाराजाओं के काल में होली का पर्व बड़े हर्ष और उल्लास से माना जाता रहा है । इसी परम्परा को मुगल बादशाहों ने भी बरकरार रखा । कट्टर बादशाह औरंगजेब को छोड़कर सभी मुगल बादशाह होली का पर्व शौक से मनाते थे ।
    सम्राट अकबर ने अपने काल में हिन्दु मुस्लिम एकता को बनाये रखने के लिए अनेकों कार्य किये । होली के पर्व पर वह अपने महल आगरा में राजपूत राजाओं मुस्लिम बादशाहों को आमंत्रित करके होली खेला करता था । होली के दिन अकबर का महल गुलाल से लाल हो उठता था । आगरा के तमाम हौजों में रंग घोल दिया जाता था । सम्राट अकबर अपनी बेगम के साथ खूब रंग खेला करते थे । नृत्य होते थे । खूब उल्लास और परिहास होता था । बेगम को अच्छी तरह रंगने के बाद वह अपने हरम की सुंदरियों के बीच जाकर होली खेलते थे ।
     वर्षों पहले जिस मस्ती से होली का पर्व मनाया जाता था आज भी उसमें इतनी ही मस्ती है । आधुनिकता के अनुसार शहरों में भले ही होली के हुड़दंग में कमी आ गयी है, पर गांव, कस्बों में आज भी होली का पर्व नाच-गाकर मनाया जाता है । रासलीलायें होती हैं, एकता और भाईचारा प्रदर्शित करने वाले कार्यक्रम किये जाते हैं वर्षों की शत्रुता होली के अवसर पर भुलाकर लोग गले मिलते हुए दिखाई देते हैं । शहरों में भले ही होली एक या एक दिन से अधिक दो दिन तक खेली जाती है, पर गांवों में होली का रंग कई दिनों तक धरती को रंगीन करता रहता है ।
     होली के दिन रंगों का खुमार दोपहर बाद ढलने लगता है । लोग घर-घर जाकर अपने मित्र, सम्बन्धियों के गले मिलते हैं । बिना किसी भेदभाव के रंगों का आदान-प्रदान करके राष्ट्रीय एकता का प्रमाण देते हैं ।
     रंगों का त्यौहार होली - एक ऐसा पर्व है जिस दिन आपसी मतभेद भूलकर लोग गले मिलते हैं । यह एक ऐसा पर्व है जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है ।
बुरा ना मानो होली है!!! 

--- विभोर   

5 comments:

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  2. bhayee hamto holi ko antarrashtriy prem sneh mante hai !

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  3. Rangin kar gaya aapka post.

    blog ke dunia me aapka swagat hay.
    aise hin likhe rahen..

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